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अगली सुबह हमारे कहने के मुताबिक होटल स्टाफ ने हमे पाँच बजे उठा दिया। नहा धो कर हम अपना सामन लेकर टैक्सी स्टैंड स्टैंड पहुँच गए। वहां ऋषिकेश के लिए जीप लगी हुई थिस लेकिन हम ही पहली सवारी थे। जब तक सवारी पूरी न हो जाये मतलब ही नहीं बनता की जीप चले। वहीँ एक टेम्पो ट्रवेलेर भी खड़ा था जो देहरादून जा रहा था। उसमे कई सवारियां बैठी हुई थी और उम्मीद थी की वो पहले चलेगा। ड्राइवर से बात की तो पता चला की पहले भी चलेगा और जितनी देर हमे ऋषिकेश पहुँचने में लगेगी उससे डेड घंटे पहले ही वो हमे देहरादून पंहुचा देगा। फिर सोचना क्या था, हम टेम्पो ट्रवेलेर में सवार हो गए और गाडी फुल होते ही देहरादून के ओर चल पड़े जहाँ से मुझे वापस दिल्ली की गाड़ी पकड़नी थी। केदारताल यात्रा लगभग समाप्त हो चुकी थी और ये मेरी सबसे यादगार यात्राओं में से एक रही…